बाद मुद्दत उन्हे देखकर यूँ लगा
जैसे बेताब दिल को करार आ गया।
आरजुओं के गुल मुसकुराने लगे
जैसे गुलशन में जान-ए-बहार आ गया।
तश्ना नज़रें मिलीं शोख़ नज़रों से जब
मय बरसने लगी जाम भरने लगा।
साक़िया आज तेरी ज़रूरत नहीं
बिन पिए, बिन पिलाए ख़ुमार आ गया।
रात सोने लगी सुबह होने लगी
शमाँ बुझने लगी दिल मचलने लगे
वक़्त की रोशनी में नहाई हुई
ज़िन्दगी पे अजब सा निखार आ गया।
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