रक्स करती है फ़ज़ा वज्द में जाम आया है
फिर कोई ले के बहारों का पयाम आया है।
मैंने सीखा है ज़माने से मोहब्बत करना
तेरा पैग़ाम-ए-मोहब्बत मेरे काम आया है।
तेरी मंज़िल है बुलंद इतनी कि हर शाम-ओ-सहर
चाँद-सूरज से तेरे दर को सलाम आया है।
ख़ुद-ब-ख़ुद झुक गई पेशानी-ए-अरबाब-ए-ख़ुदी
इश्क की राह में ऐसा भी मकाम आया है।
जब कभी गर्दिश-ए-दौराँ ने सताया है बहुत
तेरे रिन्दों की ज़बाँ पर तेरा नाम आया है।
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