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Wednesday, November 5, 2014

NishaaN bhi na chhoda ki dilko samjhayeiN- Ghulam Ali

 
निशाँ भी कोई न छोड़ा कि दिल को समझाएँ
 
तेरी तलाश में जाएँ तो हम कहाँ जाएँ।
 
 
ओ जाने वाले ये दिल बदगुमाँ भी नहीं
 
लगी है आग नशेमन में और धुआँ भी नहीं।
 
यही नसीब में लिखा था घुट के मर जाएँ।
 
 
सुनाएँ राय किसे जब वो राज़दाँ न मिला
 
खुशी मिली बहारों का वो समाँ न मिला
 
यही थी एक तमन्ना कि तुझको अपनाएँ।
 
 
 
उजड़ गई है तमन्नाएँ तेरे जाने से
 
गिला  ख़ुदा से करे या करे ज़माने से
 
ग़म-ए-जुदाई बता आज किससे टकराएँ।






 
 
 

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