मेरा जज़्ब-ए-मोहब्बत कम न होगा
जहान-ए-आरज़ू बरहम न होगा।
बढ़ेगा मेरी दुनिया में उजाला
चिराग-ए-सोज़-ए-ग़म मद्धम न होगा।
जहाँ में आब गिल से मावरा भी
तेरा दर्द-ए-मोहब्बत कम न होगा।
तेरे दर पर जो सर ख़म हो गया है
वो अब दुनिया के आगे ख़म न होगा।
लड़ूँगा गर्दिश-ए-दौराँ से ‘दर्शन’
में जोश-ए-अमल अब कम न होगा।
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