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Monday, November 3, 2014
Zindaghi ko udaas kar bhi gaya--Ghulam Ali
ज़िन्दगी को उदास कर भी गया
वो कि मौसम था एक गुज़र भी गया।
सारे हमदर्द बिछड़े जाते हैं
दिल को रोते ही थे जिगर भी गया।
ख़ैर मंज़िल तो हमको क्या मिलती
शौक-ए-मंज़िल में हमसफ़र भी गया।
मौत से हार मान ली आख़िर
चेहरा-ए-ज़िन्दगी उतर भी गया।
Ghulam Ali
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