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Monday, November 10, 2014

Danish Aligarhi Shayari

दो जवाँ दिलों का ग़म दूरियाँ समझती हैं

कौन याद करता है हिचकियाँ समझती हैं।

तुम तो ख़ुद ही क़ातिल हो, तुम ये बात क्या जानो

क्यों हुआ मैं दीवाना बेड़ियाँ समझती हैं।

बाम से उतरती है जब हसीन दोशीज़ा

जिस्म की नज़ाक़त को सीढ़ियाँ समझती हैं।

यूँ तो सैर-ए-गुलशन को कितना लोग आते हैं

फूल कौन तोड़ेगा डालियाँ समझती हैं।

जिसने कर लिया दिल में पहली बार घर ‘दानिश’




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