मिल मिल के बिछड़ने का मज़ा क्यों नहीं देते
हर बार कोई ज़ख़्म नया क्यों नहीं देते
ये रात, ये तनहाई, ये सुनसान दरीचे
चुपके से मुझे आ के सदा क्यों नहीं देते
है जान से प्यारा मुझे ये दर्द-ए-मोहब्बत
कब मैंने कहा तुमसे दवा क्यों नहीं देते
गर अपना समझते हो तो फिर दिल में जगह दो
हूँ ग़ैर तो महफ़िल से उठा क्यों नहीं देते
इक बार ही जी भर के सज़ा क्यूँ नहीं देते
गर हर्फ़-ए-ग़लत हूँ तो मिटा क्यूँ नहीं देते
-इब्राहिम अश्क़
Mil mil ke bichhadne ka maza kyuN nahiN dete?
Har baar koi zakhm naya kyuN nahiN dete?
Ye raat, ye tanhaayi, ye sunsaan dariche,
Chupke se mujhe aake sada kyuN nahiN dete,
Hai jaan se pyaara mujhe ye dard-e-muhabbat,
Kab maine kaha tumse dava kyuN nahiN dete,
Gar apna samajhte ho to fir dil meiN jagah do,
HooN ghair to mehfil se utha kyuN nahiN dete.
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